BA Semester-5 Paper-2 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2802
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - ७ :
भाषा-विज्ञान

प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।

अथवा
प्रमुख भाषा-विज्ञानों के की दृष्टि में 'भाषा-विज्ञान' की उत्पत्ति पर विचार कीजिए।

उत्तर -

भाषा-विज्ञान की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्राचीनतम् विचार यूनानियों द्वारा व्यक्त किये गये हैं। ओल्ड हेस्टामेंट ने भी इस सम्बन्ध में प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप में कुछ बातें कही गयी हैं। इसी प्रकार भारत, मिश्र, अरब, तथा अन्य देशों की धार्मिक तथा भाषा शस्त्र विषयक पुस्तकों में भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कुछ न कुछ बातें मिल जाती हैं। १८वीं सदी में इस प्रश्न पर कई भाषा-विज्ञानवेन्ताओं तथा अन्य क्षेत्रों के विद्वानों ने गम्भीरता से विचार किया। १६वीं सदी में इस प्रश्न पर विचार करने वालों की संख्या और भी बढ़ गयी। भाषा की उत्पति के सम्बन्ध में कई प्रकार के सिद्धान्त, मतवाद या वाद विभिन्न विद्वानो द्वारा प्रस्तुत किये गयें हैं। यहाँ कुछ प्रमुख मत दिये जा रहे हैं

१. दैवीय उत्पत्ति का सिद्धान्त - भाषाओं की उत्पत्तिके सम्बन्ध में यह सबसे प्राचीन मत है। लोगो का विश्वास रहा है, और कुछ अंशों में तो आज भी है कि संसार और उसकी अनेकानेक चीजों की भाँति ही भाषा को भी भगवान ने ही बनाया। भारतीय पंडित वेदों को अपौरूषेप मानते रहे हैं। उनका दृढ़ विश्वास रहा है कि संस्कृत को ईश्वर ने बनाया और फिर उसी भाषा में वेदों की रचना की। संस्कृत को 'देवभाषा' कहने में भी उनके इसी विश्वास की ओर संकेत है। संस्कृत भाषा उसमे व्याकरण के मूलाधार पाणिनि के १४ सूत्र शिव के डमरू से निकले माने जाते हैं। यहाँ भी उसी ओर संकेत हैं। बौद्ध पालि को भी इसी प्रकार मूल भाषा मानते रहे हैं और उनका विश्वास रहा है कि भाषा आदिकाल से चली आ रही है। जैन लोग तो संस्कृत पंडितों और बौद्धों से भी चार कदम आगे हैं।

२. विकासवादी सिद्धान्त - इसके अनुसार भाषा का धीरे-धीरे विकास हुआ है। सिद्धान्ततः तो यह ठीक है, किन्तु इसमें विकास या उत्पत्ति एवं अर्थ ध्वनि के सम्बन्ध का कोई संकेत नहीं हैं।

३. धातु सिद्धान्त - इसके ओर संकेत प्लेटो ने किया था किन्तु इसे व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने का श्रेय जर्मन प्रोफेसर ह्वेस को जाता हैं। इन्होंने कभी अपने किसी व्याख्यान में इसका उल्लेख किया था, जिसे बाद में उनके शिष्य डॉ. स्टाइन्याल ने मुद्रित रूप में विद्वानों के समक्ष रखा। मैक्समूलर ने भी पहले इसे स्वीकार किया और अपनी पुस्तक में भी इसे स्थान दिया, किन्तु बाद में इसे निरर्थक कहकर छोड़ दिया। इसी को डिंग डांगवाद या रणन सिद्धान्त भी कहा गया है। कुछ लोग गलती से डिंग डांगवाद का प्रयोग अनुकरण सिद्धान्त या अनुरणन सिद्धान्त के लिए करते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार संसार की हर चीज की अपनी एक ध्वनि होती हैं।

४. निर्णय सिद्धान्त - इसे प्रतीकवाद, स्वीकारवाद, संकेत सिद्धान्त, संकेतवाद आदि भी कहा गया है। इस सिद्धान्त के अनसार आरम्भ में मनुष्यों ने जब देखा कि हाथ आदि के संकेतों से काम नहीं चल रहा है, तो उन्होंने इकट्ठे होकर आवश्यक वस्तुओं या क्रियाओं आदि के लिए प्रतीक ध्वनि संकेत, सांकेतिक नाम या शब्द निश्चित करके स्वीकार किया वहीं से भाषा का आरम्भ हुआ। ध्यान देने पर पता चलता है कि यह सिद्धान्त भी निरर्थक है। (क) यदि कोई भाषा नहीं थी तो आरम्भ में लोग कैसे इकट्ठा हुए (ख) एक भी हो गये तो शब्द कैसे गढ़े गये? (ग) वस्तुतः बिना विचार विनिमय के न तो इकट्ठा होना सम्भव है और न प्रतीक रूप में नाम निर्णय और यदि इकट्ठा होने के लिए या नाम निश्चित करने के लिए लोग विचार विनिमय कर ही सकते थे, तो उसके बाद किसी अन्य भाषा की क्या आवश्यकता थी? वह तो स्वयं एक सफल या असफल भाषा थी।

५. अनुकरण सिद्धान्त - इस सिद्धान्त का प्रतिपादन भी अनेक विद्वानों ने किया है कि भाषा की उत्पत्ति अनुकरण के आधार पर हुई। मनुष्य ने अपने आस-पास के जीवों और वस्तुओं आदि की आवाज के अनुकरण पर प्रारम्भ में शब्द बनाये और उसी पर भाषा का महत्व खड़ा हुआ। इस सिद्धान्त के अर्न्तगत तीन उपसिद्धान्त रखे जा सकते है-

(क) ध्वन्यात्मक अनुकरण
(ख) अनुरचनात्मक अनुकरण
(ग) दृश्यात्मक अनुकरण।

६. मनोभावाभिव्यक्ति सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के अनुसार आरम्भ में मनुष्य विचार प्रधान प्राणी न होकर अन्य पशुओं की भाँति भाव प्रधान था और प्रसन्नता, दुःख, विस्मय, घृणा आदि के भाववश में उसके मुख से ओ छि:, धिक, आह, ओह, फाई, पूह, पिश आदि शब्द सहज ही निकल जाया करते थे। धीरे-धीरे इन्हीं शब्दों में भाषा का विकास हुआ।

७. यो-हे-हो सिद्धान्त - इसे यो-हे हो वाद, श्रमध्वनि सिद्धान्त या श्रम परिहरण मूलकतावाद
भी कहते है। इसके जन्मदाता न्वायर नायक विद्वान थे। उनका सिद्धान्त था कि परिश्रम का कार्य करते समय सांस के तेजी से बाहर भीतर आने-जाने के साथ-साथ स्वरतंत्रियों के विभिन्न रूपों में कम्पित होने एवं तदनुकूल ध्वनियाँ उच्चारित होने से कार्य करने वाले को राहत मिलती हैं। धोबी हियो या छियो कहते हैं। मल्लाह थकान के लिए यो-हे-हो कहते हैं।
८. इंगित सिद्धान्त - रिचर्ड ने अपनी पुस्तक 'हयूमन स्पीच' में मौखिक इंगित सिद्धान्त का उठाया और अपनी पुस्तक 'हयूमन स्पीच' में मौखिक इंगित सिद्धान्त नाम से इसे विद्वानों के समक्ष रखा। आइसलैण्डिक भाषा के विद्वान अलेक्जेंडर जोहान्सन भी लगभग इसी समय भारोपीय भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन करके लगभग इसी निष्कर्ष पर पहुँचे। भारोपीय भाषाओं के अतिरिक्त हिब्रू पुरानी चीनी, तुर्की तथा कुछ अन्य भाषाओं पर आधारित किया है। पहली सीढ़ी भावव्यंजक ध्वनियों की है जब मनुष्य भय, क्रोध, दुःख, हर्ष, भूख प्यास, मैथुनेच्छा आदि के कारण बन्दरों आदि की तरह इस प्रकार की ध्वनियों द्वारा अपने भावों को व्यक्त करता है।

६. टा-टा सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के आरम्भ में आदिम मानव काम करते समय जाने- अनजाने उच्चारण अवयवों से काम करने वाले अवयवों की गति का अनुकरण करता था और इस अनुकरण में कुछ ध्वनियों और ध्वनि संयोगों से शब्द का उच्चारण हो जाया करता था।

१०. संगीत सिद्धान्त - इस संगीत का सम्बन्ध प्रेम से अधिक है इसी कारण कुछ लोग इसे प्रेम सिद्धान्त कहते हैं। इसे सिद्धान्त में भाषा की उत्पत्ति मानव के संगीत से मानी जाती हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
  2. १. भू धातु
  3. २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
  4. ३. गम् (जाना) परस्मैपद
  5. ४. कृ
  6. (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
  7. प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
  8. प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
  10. प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
  11. प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
  12. प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  13. प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  14. कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
  15. कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
  16. करणः कारकः तृतीया विभक्ति
  17. सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
  18. अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
  19. सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
  20. अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
  21. प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
  22. प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
  23. प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
  26. प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  27. प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
  28. प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  29. प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
  30. प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
  35. प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
  36. प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
  37. प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  38. प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
  39. प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
  40. प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
  42. प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
  44. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  45. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  46. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
  47. प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
  48. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
  50. प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
  52. प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
  56. प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
  57. प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
  58. प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
  60. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  62. प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
  63. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।

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